"अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रा वसूलेगी ₹28,483 करोड़ का बिजली बकाया, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला"

 अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रा वसूलेगी ₹28,483 करोड़ का बिजली बकाया — सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद बढ़ेगा दिल्ली का बिजली बिल




दिल्ली में बिजली की सप्लाई करने वाली दो प्रमुख कंपनियां, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (BYPL) और बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (BRPL), अब उपभोक्ताओं से कुल ₹28,483 करोड़ का बकाया वसूलने जा रही हैं। यह वसूली सुप्रीम कोर्ट के उस अहम आदेश के बाद संभव हुई है, जिसमें "रेगुलेटरी एसेट्स" की वसूली के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए गए हैं।

पृष्ठभूमि — मामला क्या है?

BYPL और BRPL, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (अनिल अंबानी समूह) की बिजली वितरण कंपनियां हैं, जिनमें रिलायंस की 51% और दिल्ली सरकार की 49% हिस्सेदारी है। ये कंपनियां लगभग 53 लाख घरों को बिजली उपलब्ध कराती हैं।
31 जुलाई 2025 तक इन दोनों कंपनियों पर ₹28,483 करोड़ का बकाया था। इसका मुख्य कारण "रेगुलेटरी एसेट्स" का निपटारा न होना है, जो पिछले कई वर्षों से बढ़ता चला आ रहा था।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश — कैसे बदल जाएगी स्थिति?

सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2025 को अपने फैसले में निर्देश दिया कि दिल्ली की तीन निजी डिस्कॉम कंपनियों (BYPL, BRPL और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड) को कुल ₹27,200.37 करोड़ के रेगुलेटरी एसेट्स और ₹5,787 करोड़ की वहन लागत का भुगतान तीन साल में करना होगा।
इसके तहत, 1 अप्रैल 2024 से शुरू होकर अगले चार साल में यह वसूली की जाएगी। दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (DERC) इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेगा।

रेगुलेटरी एसेट्स — आसान भाषा में समझें

रेगुलेटरी एसेट्स वह राशि होती है जिसे बिजली कंपनियां तत्काल उपभोक्ताओं से नहीं वसूल पातीं, लेकिन नियामक एजेंसी (जैसे DERC) भविष्य में वसूली की अनुमति देती है।
यह स्थिति तब बनती है जब बिजली उत्पादन और सप्लाई की असली लागत, उपभोक्ताओं से लिए जाने वाले तयशुदा टैरिफ से ज्यादा हो जाती है। ऐसे मामलों में अतिरिक्त लागत को “रेगुलेटरी एसेट” के रूप में दर्ज कर लिया जाता है और बाद में धीरे-धीरे बिजली बिल में जोड़ा जाता है।

उदाहरण के तौर पर:

BRPL का बकाया: ₹12,993.53 करोड़

BYPL का बकाया: ₹8,419.14 करोड़

टाटा पावर DDL का बकाया: ₹5,787.70 करोड़
कुल = ₹27,200.37 करोड़ (सहित वहन लागत)

उपभोक्ताओं पर असर

चूंकि यह रकम अगले कुछ वर्षों में बिजली बिलों के जरिए वसूली जाएगी, विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में बिजली की दरें बढ़ सकती हैं। इससे लगभग हर घर और व्यापारी पर असर पड़ेगा।
ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम बिजली कंपनियों की वित्तीय सेहत सुधार सकता है, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए यह जेब पर अतिरिक्त बोझ डालेगा।

कानूनी लड़ाई का सफर

रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि नियामक परिसंपत्तियों का निर्माण और उनका समय पर निपटारा न होना कंपनियों के साथ अन्याय है।
कई साल की सुनवाई और सभी पक्षों (राज्य सरकार, बिजली कंपनियां, और नियामक आयोग) की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने वसूली के लिए स्पष्ट खाका तैयार करने का निर्देश दिया।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक लंबे समय से लंबित विवाद को खत्म कर दिया है, लेकिन इसके असर से दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं की जेब हल्की होना तय है। जहां कंपनियों के लिए यह वित्तीय राहत है, वहीं उपभोक्ताओं के लिए यह आने वाले वर्षों में महंगी बिजली का संकेत है।
अब देखना होगा कि DERC किस तरह इस वसूली को चरणबद्ध और पारदर्शी तरीके से लागू करता है, ताकि उपभोक्ताओं पर अचानक अत्यधिक भार न पड़े।


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