उज्जैन गणेशोत्सव 2025: सिंधी कॉलोनी में भव्य गणपति प्रतिमा और जुलूस

 उज्जैन में गणेशोत्सव 2025: भव्यता, परंपरा और श्रद्धा का अद्भुत संगम



प्रस्तावना

गणेश चतुर्थी केवल महाराष्ट्र या मुंबई तक सीमित नहीं रही, बल्कि आज यह पूरे भारत में आस्था, संस्कृति और एकता का उत्सव बन चुकी है। मध्य प्रदेश का उज्जैन—जो महाकाल की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है—इस पर्व पर एक विशेष आध्यात्मिक आभा से जगमगा उठता है। इस वर्ष (2025) भी यहां गणेशोत्सव का उत्साह चरम पर है। भले ही गणेश चतुर्थी 27 अगस्त से शुरू होनी है, लेकिन उज्जैन में इसकी धूम-धाम दो दिन पहले ही दिखाई देने लगी है। ढोल-नगाड़ों, डीजे और जयकारों के बीच सड़कों पर बप्पा का भव्य स्वागत किया जा रहा है।

गणेशोत्सव की शुरुआत: जन्म की तरह उल्लासपूर्ण माहौल

रविवार रात्रि को उज्जैन के फ्रीगंज क्षेत्र से गणपति बप्पा का एक भव्य जुलूस निकाला गया। विशाल प्रतिमा, ढोल-ताशे और भक्तों की भीड़ ने ऐसा दृश्य रचा कि देखने वाले ठहरकर निहारते रह गए। "गणपति बप्पा मोरिया" के जयकारों से पूरी नगरी गूंज उठी।

यह आयोजन कोई साधारण परंपरा नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक दशक से भी अधिक की मेहनत और आस्था जुड़ी हुई है। श्री उमा पुत्र समिति सिंधी समाज और सिंधी कॉलोनी की अनमोल मित्र मंडली लगातार 12 वर्षों से इस पर्व को विशेष रूप में मना रही है।

भव्य प्रतिमा का आकर्षण: महाभारत के रथ जैसा अलौकिक दृश्य

इस वर्ष की सबसे बड़ी खासियत है सिंधी कॉलोनी (गली नंबर 3) में स्थापित की गई गणेश प्रतिमा। लगभग 85,000 रुपये की लागत से तैयार यह प्रतिमा अनूठी है क्योंकि इसमें भगवान गणेश को उसी प्रकार के रथ पर विराजित किया गया है, जैसा महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ संचालित किया था।

प्रतिमा में घोड़े रथ को खींचते प्रतीत होते हैं और गणेशजी रथ पर विराजे हुए हैं। इस दृश्य ने श्रद्धालुओं को ऐसा दिव्य अनुभव दिया, मानो स्वयं महाभारत का युग फिर से जीवंत हो उठा हो।

श्रद्धालुओं की भावनाएँ और भीड़ का उत्साह

जब प्रतिमा को पंडाल तक लाया जा रहा था, तो राहगीरों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग रुक-रुककर फोटो खींचते, वीडियो बनाते और निहारते ही रह गए। पुलिस को व्यवस्था संभालनी पड़ी ताकि प्रतिमा सुरक्षित रूप से अपने स्थान तक पहुंच सके।

यह दृश्य केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं था, बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिक उत्सव की झलक भी प्रस्तुत कर रहा था।

आयोजन समिति: युवा शक्ति की मिसाल

पिछले बारह वर्षों से इस आयोजन को सफल बनाने में स्थानीय युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस बार भी आयोजन समिति में अमित कृष्णानी, जयेश चौधरी, यश कृष्णानी, निलेश परसवानी, लविश, मनमोहन, अभिजीत सिंह, सुमित, मयूर, गौरव सहित अनेक युवा सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सामाजिक आंदोलन की तरह है, जहां नई पीढ़ी परंपरा से जुड़कर सामूहिक सहयोग और एकता की मिसाल पेश कर रही है।

गणेशोत्सव का महत्व: "जन्म से विसर्जन तक"

गणेशोत्सव की शुरुआत प्रतिमा स्थापना से होती है, जिसे प्रतीकात्मक रूप से गणपति का "जन्म" कहा जा सकता है। इसके बाद 10 दिनों तक भक्तों द्वारा पूजन, आरती, भजन और सामूहिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं।

इन दिनों में भक्त मानते हैं कि विघ्नहर्ता गणपति उनके घरों में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। अंततः विसर्जन के समय यह संदेश मिलता है कि जीवन अस्थायी है, लेकिन आस्था और संस्कार सदैव जीवित रहते हैं।

सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव

उज्जैन जैसे धार्मिक नगर में गणेशोत्सव केवल आध्यात्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति देता है। पंडाल निर्माण, प्रतिमा निर्माण, सजावट, मिठाई, फूल और ढोल-ताशा कलाकारों को रोजगार मिलता है। एक अनुमान के अनुसार, मध्य प्रदेश में गणेशोत्सव से हजारों परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं।

निष्कर्ष

उज्जैन का गणेशोत्सव केवल पूजा-पाठ का आयोजन नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संस्कृति और सामाजिक एकजुटता का जीवंत उदाहरण है। इस वर्ष सिंधी कॉलोनी की भव्य प्रतिमा और महाभारत शैली का रथ श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आकर्षण है, जो आस्था और कला का अनूठा संगम प्रस्तुत कर रहा है।

"जन्म" से लेकर "विसर्जन" तक गणेशोत्सव हमें यह संदेश देता है कि जीवन क्षणभंगुर है, लेकिन सामूहिकता, भक्ति और संस्कृति ही वह धरोहर है जो पीढ़ियों तक जीवित रहती है।



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